Tuesday, December 17, 2019

न्याय

न्याय के मंदिर में

आंखों पर पट्टी बांधे

मैं न्याय की देवी .प्रतीक्षा रत  ...

कब मिलेगा न्याय सबको...

हाथ में तराजू और तलवार लिये

तारीखों पर  तारीख की

आवाजें सुनती रहती हूँ ..

वो चेहरे देख नहीं पाती ,पर

उनकी वेदना समझ पाती हूँ

जो आये होंगे

न्याय की आस में

शायद कुछ गहने गिरवी रख

वकील की फीस चुकाई होगी,

या  फिर थोड़ी सी जमीन बेच

 बेटी के इज्जत की सुनवाई में

बचा  सम्मान  फिर गवाया होगा

और मिलता क्या

एक और तारीख ,

मैं न्याय की देवी प्रतीक्षा रत ....

कब मिलेगा इनको  न्याय...

सुनती हूँ

सच को दफन करने की चीखें

खनकते सिक्कों की आवाजें

वो अट्टहास  झूठी जीत का

फाइलों में कैद  कागज के

फड़फड़ाने की,

पथराई आँखो के मौन

हो चुके शब्दों के कसमसाने की

शब्द भी स्तब्ध रह जाते

सुनाई पड़ती ठक ठक !

कलम  के आवरण से

निकलने की   बैचेनी

सुन लेती हूँ

कब लिखे वो न्याय

मैं न्याय की देवी  प्रतीक्षारत....

महसूस करती हूँ

शायद यहाँ  लोग

काला पहनते होंगे

जो अवशोषित करता होगा

झूठ फरेब  बेईमानी

तभी मंदिर बनता जा रहा

अपराधियों का अड्डा

कब मिलेगा न्याय  और

कैसे मिलेगा न्याय

जब सबूतों को

मार दी  जाती गोली

मंदिर परिसर में

मैं मौन पट्टी बांधे इंतजार में

सबको कब मिलेगा न्याय..

और जग के पालनहार को

कब मिलेगा न्याय .....



©anita_sudhir

8 comments:

  1. बहुत ही मार्मिक रचना न्याय तंत्र से प्रभावित लोगों की मानसिक स्थिति को बयां करती हुई, वर्तमान परिस्थितियां भी बिल्कुल ऐसे ही चल रही है न्याय मांगने जाओ तो न्याय उनको मिलता है जिनके ऊपर आरोप लगा हो... इतनी प्रभावशाली रचना के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई

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  2. आ0 सादर धन्यवाद

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  3. बहुत ही मार्मिक रचना

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २३ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  6. न्याय के इंतज़ार में अन्याय सहने वालो की मार्मिक अभिव्यक्ति ,सादर नमन

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  7. बेटी के इज्जत की सुनवाई में
    बचा सम्मान फिर गवाया होगा
    और मिलता क्या
    एक और तारीख ,
    बहुत ही मर्मस्पर्शी लाजवाब कृति

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