Friday, December 13, 2019





कीमत
कीमत का अंदाज नहीं ..

राजनीति की काली कोठर
अफवाहों का बाजार गर्म
आग लगाते नाम धर्म के!
प्राणों की आहुति से
मिली आजादी का
अब  बचा लिहाज नहीं
क्या कीमत का अंदाज नहीं !

जीवनदायिनी प्रकृति से
मिल रही जब मुफ्त हवा
अनर्थ  क्यों करते जा रहे
वृक्ष  काटते जा रहे
बिकने लगेगी मोल जब
तब करना एतराज़ नहीं
कीमत का अंदाज नहीं ..

कितनी रातें जग कर काटीं
गीले में खुद  सो कर वो
सूखे में  हमें सुलाती रही
 कष्टों में जो
हरदम साथ निभाती रही
बूढ़े हाथों की झुर्री में
लिखी संघर्षों की गाथा!
माँ को कभी करना नाराज नहीं
ममता की कीमत का अंदाज नहीं ...

कड़ी धूप में श्रम करें
राष्ट्र निर्माण में अनमोल
योगदान करें
दो रोटी को क्यों तरसें ये
इनके स्वेद कणों के
सम्मान का क्या रिवाज नहीं
क्या समाज में
इनकी कीमत का अंदाज नहीं ..

मिली हमें अनुपम सौगातें
इन पर हमको नाज बड़ा
चुका नहीं सकते इनकी कीमत
करते  रहें  सुकाज यहाँ!
हाथ पे हाथ धरे बैठे
आती तुमको क्या लाज नहीं ..
मिला है हमको ये जीवन
क्या इसके कीमत का अंदाज नहीं ...
©anita_sudhir

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 13 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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