Thursday, December 19, 2019


कुंडलिया

1) डोली
डोली बेटी की सजी,खुशियां मिली अपार।
 सपने आंखों में लिये ,छोड़ चली घर द्वार।।
 छोड़ चली घर द्वार ,जग की ये रीति न्यारी।
दो कुल की है लाज ,सदा खुश रहना प्यारी ।।
देते  सब आशीष , सुख से भरी हो झोली ।
दृग के भीगे कोर ,उठे जब तेरी डोली।।

2)बिंदी

बिंदी माथे पर सजा ,कर सोलह श्रृंगार ।
पिया तुम्हारी राह ये ,अखियां रही निहार ।।
अखियां रही निहार,तनिक भी चैन न मिलता।
कैसे कटती रात ,विरह में तन ये जलता।।
बढ़ती मन की पीर ,छेड़ती है जब ननदी ।
तुम जीवन आधार ,तुम्हीं से मेरी बिंदी।।

स्वरचित
अनिता सुधीर






8 comments:

  1. सुंदर ,भावपूर्ण रचना ,सादर नमन

    ReplyDelete
  2. यह बिंदी स्त्रियोंं का श्रृंगार है अथवा उनकी पीड़ा, मैं ठीक से समझ नहीं पाता ?
    बस भावनाओं से भरी ऐसी रचनाओं को पढ़कर कुछ अनुमान लगाने का प्रयास करता हूँँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. श्रृंगार ही है आ0 ,
      सादर आभार

      Delete
  3. बेहद खूबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
    सादर

    ReplyDelete

करवा चौथ

करवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएं  प्रणय के राग गाने को,गगन में चाँद आता है। अमर अहिवात जन्मों तक,सुहागन को सुनाता है।। करे शृंगार जब नारी,कलाए...