Monday, December 23, 2019



कुंडलियां

*गजरा**
गजरा ले लो आप ये ,सुनते थे आवाज।
रुके वहाँ कुछ सोच के,छोड़े सारे काज ।।
छोड़े सारे काज,दिखी थी कोमल कन्या ।
मुख मलिन वसन हीन,कहाँ थी इसकी जन्या।।
मन में  उठती पीर....करें  ये जीवन उजरा।
लेकर आया मोल ,.....उन्हीं हाथों से गजरा।।
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*कंगन **
असली कंगन पहन के ,महिला करती सैर ।
वहाँ लुटेरे मिल गये ....कंगन की नहि खैर ।।
कंगन की नहि खैर ,सभी देखते तमाशा ।
छीना झपटी मार,नहीं स्त्री छोड़ी आशा ।।
निकले मुख से बोल,लिये जाओ !वो नकली।
बनवा लूँगी चार ,बचाये कंगन असली ।।
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6 comments:

  1. अति सुन्दर कुण्डलियां 👌👌👌😊🙏

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  2. बहुत ही सुन्दर कुण्डलियाँ
    वाह!!!

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  3. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 27 मार्च 2022 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

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  4. नकली वाली बात सही है ।
    सुंदर सृजन ।

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